सुस्वागतम....

दोस्तों "अभिव्यक्ति"में आपका स्वागत है. व्यवसायसे तबीब होनेसे अपने दर्दीओंके लिये दवाईयोंका परचा लिखते लिखते कब ये गझलें और कवितायें मैंने लिख डाली उसका मुझे पता ही न चला. आप जैसे सज्जन मित्र और स्नेहीजनोंके अति आग्रहवश निजानंदके लिये लिख्खी गई मेरी ये रचनायें ब्लॉगके स्वरूपमें आप समक्ष पेश करते हुए मुझे अत्याधिक हर्ष हो रहा है. मैं कोई बडा और जाना माना शायर या कवि तो नहीं हूं ईसलिये संभव है कि मेरी रचनाओमें शायद कहीं कोई त्रुटि रह गई हो. आपसे यही उम्मीद करता हूं कि ईस त्रुटिको मेरे ध्यान पर लानेकी कृपा अवश्य करें ताकि मैं ईसे सुधारके कुछ शीख पाउं. ये भी संभव है कि किसी रचनामें आपको कोई जानेमाने रचनाकारकी झलक दिखाई दे पर ये तो आप भी जानते ही है कि मेरे जैसे नवोदितोको शुरु शुरुमें प्रेरनाकी जरूरत होती ही है. आशा है कि आपको मेरी रचनायें पसंद आयेगी. आपके सुझावों, सूचनों एवम प्रोत्साहनकी मुझे हमेशा आवश्यकता रहेगी तो आप अपना प्रतिभाव देके मुझे आभारी करें. अंतमें बस ईतना ही कहूंगा कि, "एहसान मेरे दिलपे तुम्हारा है दोस्तो, ये दिल तुम्हारे प्यारका मारा है दोस्तो." अस्तु.

"राझ"की दो-चार पंक्तियां


December 21st 2010
मुझे ईश्कपे यकीं, तुम्हे हुस्नका गुमां;
देखना है "राझ" अब ये किस्सा खत्म हो कहां ।
December 17th 2010
रेतपे नाम कभी लिखते नहीं,
रेतपे लिखे नाम कभी टिकते नहीं ।
तुमने हमे पथ्थरदिल कह तो दिया,
पर पथ्थरपे लिखे नाम कभी मिटते नहीं ।
December 7th 2010
कभी चूपकेसे चोरीसे आ जाते है,
कभी सरेआम आके बहोत सताते है ।
चैन मिलता गर रोनेसे तो रो लेते हम,
पर अश्क कहां सभी दामनको पाते है ?
November 30th 2010
आवाझकी अनसूनी आहटसे तन्हाईकी तीसरी दिवार तूटी,
मिला मुकद्दर ऊस जगहसे जहां दिवारमें दरार छूटी ।
November 25th 2010
रोशनी मिले गर अंधेरेको,
आदमी तरसे नही सवेरेको;
मजबूर ना रहे "राझ" दुनियामें कोई,
आओ रोशन करे हर बसेरेको ।
November 24th 2010
सपनोंके घरमें रहेता हुं
मिली तूं तो संवर जाउंगा,
न मिली तो बिखर जाउंगा ।
November 18th 2010
मेरे मौजूदके लिये ये सवाल क्यूं है ?
जब मेरा कोई वजूद ही नही तो ये बबाल क्यूं है ?
November 14th 2010
बरसातने फिरसे ये काम कर दिया,
मेरा हर आंसु तेरे नाम कर दिया ।
छूपाये रख्खे थे दिलमें दर्द तेरा,
गिरे जो पलकोंसे चर्चा सरेआम कर दिया ।
November 7th 2010
बहार आनेसे हरकोई गुल खिलता नहीं,
महोब्बत न मिलनेसे हरकोई यहां मरता नहीं ।
मौतका सामान यहां हर शक्लमें मिलता है,
सिर्फ चितापे यहां हरकोई जलता नहीं ।
November 6th 2010
कोई अनकही सी कहानी, कोई अनसूना सा फसाना;
कोई झिलमिलाता आंसु, तो कोई दबी छूपी सी आह;
दिलसे सोचनेवालोंका "राझ" यही अंजाम होता है ।
November 5th 2010
ये कैसी शम्मा है जहां परवाना कोई नहीं !?
रुसवाईयां मेरे नाम बहोत, अफसाना कोई नहीं ।
October 21st 2010
अब तो अपनी तबियत भी जुदा लगती है,
सांस लेता हूं तो जख्मको हवा लगती है ।
कभी राज़ी तो कभी खफा लगती है,
जिंदगी अब तू ही बता तू मेरी क्या लगती है ।
October 20th 2010 (A gift from someone special)
नाम लिखने बैठा आपका तो नज़म बन गई,
अश्क स्याही और आंखे कलम बन गई;
वो अल्फाज़ कुछ ऐसे बिखरे फिज़ाओमें की
जिंदगी "राझ"की एक गझल बन गई ।
October 19th 2010
कुछ सामाने-महोब्बत, सौगाते-गम लाया हूं,
यार मैं भी तेरी तरहा जिस्तका सताया हूं ।
October 18th 2010
रिश्ते कितने अनमोल कितने नाजुक
पर तुम नहीं समज़ पाओगे,
स्वको छोडकर सर्वस्व समर्पित
तुम नहीं कर पाओगे ।
October 17th 2010
एक मिला सहेरा और एक प्यास मिली,
ईश्कमें तेरे हमें ये सौगात मिली ।
October 16th 2010
कभी यूं भी हो मेरी हमसफर कि ईस रातकी फिर सहर न हो,
मैं तेरे ज़हेनको चूम लूं पर तुज़े ईसकी खबर न हो ।
October 15th 2010
मंझिलपे आके मुसाफिर हो गया,
मैं भी चलनेके काबिल हो गया ।
बहोतसे चेहरे थे मेरे ज़नाजेमें,
मैं भी उनमें सामिल हो गया ।
October 14th 2010
रातके सन्नाटेमे तेरी याद मेरे सीनेसे लिपट जाती है,
और फिर मैं तन्हाईकी चद्दर ओढकर सो जाता हूं; रातके सन्नाटेमे !
October 13th 2010
क्या रदीफ और क्या काफिया, अपना तो एक ही वाकिया;
ला पीला दे साकिया, ला ला पीला दे साकिया ।
मर्जे हीज्रकी दवा है ये, मरीज़े ईश्ककी दुवा है ये;
ला पीला दे साकिया, ला ला पीला दे साकिया ।
October 12th 2010
गये आबे-हयातको और सहरा पाके लौटे,
ईसपे भी ये सवाल की हम क्यूं है ईतने प्यासे ?!
October 11th 2010
दिल तराशके "ताज"(महल) नही बनाया जा सकता,
हर कीसीको यहां मुमताज़ नही बनाया जा सकता ।
October 10th 2010
आदमीसे ईन्सा, ईन्सासे ईसा बनाया जाये,
सोचता हूं अब यहां किसे मसीहा बनाया जाये ?
October 9th 2010
जिन्दगी अकसर सांसोसे सरक जाती है,
रात कीतनी भी अंधेरी हो सहर हो ही जाती है ।
तन्हा तन्हा भले आलम हो जिस्मों जांका;
रफ्ता रफ्ता तन्हाईकी आदत सी हो जाती है ।
October 8th 2010
जिंदगी जीनेके लिये क्या चाहिये?
बस एक सिर्फ “उसकी” दुवा चाहिये;
शोलोंकी भडक काफी नही होती,
जलनेके लिये दिलमें धुवां चाहिये ।

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