जींदगी आप सी हसीन होती तो क्या होता ?
बेखुदी मेरी भी कमसीन होती तो क्या होता ?
जन्नत बक्ष दी खुदाने आपको कयामतपे !
तेहरीरे मेरी भी संगीन होती तो क्या होता ?
गीले शीकवे बाबस्ता मेरे सर आंखो पर,
दास्ताने महोब्बत भी नमकीन होती तो क्या होता ?
जाने कितने मरासिम छूटे जिंदगीके सफरमें,
मौत भी “राझ”की रंगीन होती तो क्या होता ?
बेखुदी मेरी भी कमसीन होती तो क्या होता ?
जन्नत बक्ष दी खुदाने आपको कयामतपे !
तेहरीरे मेरी भी संगीन होती तो क्या होता ?
गीले शीकवे बाबस्ता मेरे सर आंखो पर,
दास्ताने महोब्बत भी नमकीन होती तो क्या होता ?
जाने कितने मरासिम छूटे जिंदगीके सफरमें,
मौत भी “राझ”की रंगीन होती तो क्या होता ?
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