रोशनीको घर जलाया नही करते,
हवाओंपे मुकद्दर सजाया नही करते ।
बुंद बुंद टपकेगी गझल लहूसे,
दिवानोको यूं सताया नही करते ।
जिस्मके साथ जांको भी जलाये रखिये,
जले मुर्देको फिरसे जलाया नही करते ।
बहोतसे फासले किये तय हमने सफरमें,
दिलोंके फासले क्यों मिटाया नही करते ?
मिलेगा वो बियांबांमें या सहराकी धूपमें,
हरकोई तो "राझ" को अपनाया नही करते ।
हवाओंपे मुकद्दर सजाया नही करते ।
बुंद बुंद टपकेगी गझल लहूसे,
दिवानोको यूं सताया नही करते ।
जिस्मके साथ जांको भी जलाये रखिये,
जले मुर्देको फिरसे जलाया नही करते ।
बहोतसे फासले किये तय हमने सफरमें,
दिलोंके फासले क्यों मिटाया नही करते ?
मिलेगा वो बियांबांमें या सहराकी धूपमें,
हरकोई तो "राझ" को अपनाया नही करते ।
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