मिले हो दिल तो फिर रस्मोंकी बंदिशे क्यूं है ?
तूं गैर है तो फिर तुज़े पानेकी ख्वाहिशे क्यूं है ?
मैं क्या ईतना गिर चुका हूं नज़रोंसे खुद की,
मेरे गम फिर तुज़े दिखानेकी कोशिशे क्यूं है ?
चाहत कभी कीसीके लिये ईतनी तो न थी,
खुदासे फिर तुज़े मांगनेकी तपशिशे क्यूं है ?
हर जनममें "राझ" सिर्फ जिस्म ही बदलता है,
मेरा वजूद मिटानेकी फिर साजिशे क्यूं है ?
तूं गैर है तो फिर तुज़े पानेकी ख्वाहिशे क्यूं है ?
मैं क्या ईतना गिर चुका हूं नज़रोंसे खुद की,
मेरे गम फिर तुज़े दिखानेकी कोशिशे क्यूं है ?
चाहत कभी कीसीके लिये ईतनी तो न थी,
खुदासे फिर तुज़े मांगनेकी तपशिशे क्यूं है ?
हर जनममें "राझ" सिर्फ जिस्म ही बदलता है,
मेरा वजूद मिटानेकी फिर साजिशे क्यूं है ?
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