मैंने खुदको ढुंढना चाहा मगर,
आईना भी शर्मशुदा निकला ।
जहां भी निकला, जीधर निकला,
तेरा वजुद मुज़में मौजुदा निकला ।
उनके हुस्नकी अदा भी खूब है,
हर वार जीगरके पार बाखुदा निकला ।
परेशां देखते रह गये लोग ये तमाम,
वाएज़से जो निकला मयशुदा निकला ।
ताउम्र जिसे ढुंढता रहा मैं हर जगह,
वो शख्श मेरे घरमें गुमशुदा निकला ।
रहा तरसता खुशनुमा हस्तीको "राझ",
तेरे शहरमें पर हर कोई गमशुदा निकला ।
आईना भी शर्मशुदा निकला ।
जहां भी निकला, जीधर निकला,
तेरा वजुद मुज़में मौजुदा निकला ।
उनके हुस्नकी अदा भी खूब है,
हर वार जीगरके पार बाखुदा निकला ।
परेशां देखते रह गये लोग ये तमाम,
वाएज़से जो निकला मयशुदा निकला ।
ताउम्र जिसे ढुंढता रहा मैं हर जगह,
वो शख्श मेरे घरमें गुमशुदा निकला ।
रहा तरसता खुशनुमा हस्तीको "राझ",
तेरे शहरमें पर हर कोई गमशुदा निकला ।
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