तेरे निसार कर दी जिंदगानी मैने,
तभी तो न की कभी बंदगानी मैने ।
बांटता फिरता हुं गली गली खुदको,
अपनोपे की है ये महेरबानी मैने ।
तुझसे बिछडके कभी, न रो सके हम;
अपने ही हाथों मोल ली पशेमानी मैने ।
तुझसे जब मिलता हुं टुकडे टुकडे मिलता हुं,
देखी है "राझ"की भी कदरदानी मैने ।
तभी तो न की कभी बंदगानी मैने ।
बांटता फिरता हुं गली गली खुदको,
अपनोपे की है ये महेरबानी मैने ।
तुझसे बिछडके कभी, न रो सके हम;
अपने ही हाथों मोल ली पशेमानी मैने ।
तुझसे जब मिलता हुं टुकडे टुकडे मिलता हुं,
देखी है "राझ"की भी कदरदानी मैने ।
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