एक खलिश सी दिलमें समाई रहेती है,
भीडके मौसमें भी घरमें तन्हाई रहेती है ।
खयाल तुम्हारे आये तो बिखरती है,
बाकी पहरों धूप सी मंडराई रहेती है ।
तुमसे बिछडे बरसों बिते फिर भी,
महेंफिल मेरी आज भी सजाई रहेती है ।
खुदा ढूंढता है "राझ" मंदिरो-मस्जिदोमें,
कौन बताये उसे, दिलमें ही खुदाई रहेती है ।
भीडके मौसमें भी घरमें तन्हाई रहेती है ।
खयाल तुम्हारे आये तो बिखरती है,
बाकी पहरों धूप सी मंडराई रहेती है ।
तुमसे बिछडे बरसों बिते फिर भी,
महेंफिल मेरी आज भी सजाई रहेती है ।
खुदा ढूंढता है "राझ" मंदिरो-मस्जिदोमें,
कौन बताये उसे, दिलमें ही खुदाई रहेती है ।
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