सुस्वागतम....

दोस्तों "अभिव्यक्ति"में आपका स्वागत है. व्यवसायसे तबीब होनेसे अपने दर्दीओंके लिये दवाईयोंका परचा लिखते लिखते कब ये गझलें और कवितायें मैंने लिख डाली उसका मुझे पता ही न चला. आप जैसे सज्जन मित्र और स्नेहीजनोंके अति आग्रहवश निजानंदके लिये लिख्खी गई मेरी ये रचनायें ब्लॉगके स्वरूपमें आप समक्ष पेश करते हुए मुझे अत्याधिक हर्ष हो रहा है. मैं कोई बडा और जाना माना शायर या कवि तो नहीं हूं ईसलिये संभव है कि मेरी रचनाओमें शायद कहीं कोई त्रुटि रह गई हो. आपसे यही उम्मीद करता हूं कि ईस त्रुटिको मेरे ध्यान पर लानेकी कृपा अवश्य करें ताकि मैं ईसे सुधारके कुछ शीख पाउं. ये भी संभव है कि किसी रचनामें आपको कोई जानेमाने रचनाकारकी झलक दिखाई दे पर ये तो आप भी जानते ही है कि मेरे जैसे नवोदितोको शुरु शुरुमें प्रेरनाकी जरूरत होती ही है. आशा है कि आपको मेरी रचनायें पसंद आयेगी. आपके सुझावों, सूचनों एवम प्रोत्साहनकी मुझे हमेशा आवश्यकता रहेगी तो आप अपना प्रतिभाव देके मुझे आभारी करें. अंतमें बस ईतना ही कहूंगा कि, "एहसान मेरे दिलपे तुम्हारा है दोस्तो, ये दिल तुम्हारे प्यारका मारा है दोस्तो." अस्तु.

Friday, May 6, 2011

(23) आरझु....


कभी यूं भी आ मेरे ख्वाबमें
की हकीकतोको भूला दु मैं,
मेरी दुनिया फिरसे संवार दे;
की महोब्बतोंका सिला दु मैं ।
यूं तुझसे बिछडके फिर कभी,
न जी सका मैं चैनसे;
मेरे अश्क है मेरी जिंदगी,
मेरे अश्क तुझको पीला दु मैं ।
जो अक्स तेरी नजरमें था,
वो रक्स पैमानेमें कहां;
अय खुदा तु फिरसे बहार दे,
मेरी चश्मेनमको खिला दु मैं ।
वो गुरुर था जो पिघल गया,
ये वो ईश्क है जो निखर गया;
मेरी वफासे तु ना मुकर,
तुझे जिस्मों-जांमें मिला दु मैं ।