तुम्हारे बिना सूरज तो नीकलता है, पर दिन ऊगता नही ।
तुम्हारे बिना चांद तो चमकता है, पर रात ढलती नही ।
तुम्हारे बिना समय तो चलता है, पर घडियां बीतती नही ।
तुम्हारे बिना दिल तो धडकता है, पर मन लगता नही ।
तुम्हारे बिना फूल तो खिलते है, पर बाग महेंकता नही ।
तुम्हारे बिना पंछी तो गाते है, पर संगीत जचता नही ।
तुम्हारे बिना नींद तो आती नही, और सपने दिनमें सताते है ।
तुम्हारे बिना लोग तो मिलते है, पर "राझ" तन्हा है ।
तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना,
बहोत कुछ कहेना है; पर कहे तो किससे कहे ?
तुम्हारे बिना....
तुम्हारे बिना चांद तो चमकता है, पर रात ढलती नही ।
तुम्हारे बिना समय तो चलता है, पर घडियां बीतती नही ।
तुम्हारे बिना दिल तो धडकता है, पर मन लगता नही ।
तुम्हारे बिना फूल तो खिलते है, पर बाग महेंकता नही ।
तुम्हारे बिना पंछी तो गाते है, पर संगीत जचता नही ।
तुम्हारे बिना नींद तो आती नही, और सपने दिनमें सताते है ।
तुम्हारे बिना लोग तो मिलते है, पर "राझ" तन्हा है ।
तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना,
बहोत कुछ कहेना है; पर कहे तो किससे कहे ?
तुम्हारे बिना....
गुजराती साहित्यके ख्यातनाम कवि श्री सुरेश दलालकी निम्नलिखित पंक्तिओसे प्रेरित होकर:-
તારા વિના સૂરજ તો ઊગ્યો
પણ આકાશ આથમી ગયું.તારા વિના ફૂલ તો ખીલ્યાં
પણ આંખો કરમાઈ ગઈ.
તારા વિના ગીત તો સાંભળ્યું
પણ કાન મૂંગા થયા.
તારા વિના…
તારા વિના…
તારા વિના…
જવા દે,કશું જ કહેવું નથી.
અને કહેવું પણ કોને તારા વિના ?
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