सुस्वागतम....

दोस्तों "अभिव्यक्ति"में आपका स्वागत है. व्यवसायसे तबीब होनेसे अपने दर्दीओंके लिये दवाईयोंका परचा लिखते लिखते कब ये गझलें और कवितायें मैंने लिख डाली उसका मुझे पता ही न चला. आप जैसे सज्जन मित्र और स्नेहीजनोंके अति आग्रहवश निजानंदके लिये लिख्खी गई मेरी ये रचनायें ब्लॉगके स्वरूपमें आप समक्ष पेश करते हुए मुझे अत्याधिक हर्ष हो रहा है. मैं कोई बडा और जाना माना शायर या कवि तो नहीं हूं ईसलिये संभव है कि मेरी रचनाओमें शायद कहीं कोई त्रुटि रह गई हो. आपसे यही उम्मीद करता हूं कि ईस त्रुटिको मेरे ध्यान पर लानेकी कृपा अवश्य करें ताकि मैं ईसे सुधारके कुछ शीख पाउं. ये भी संभव है कि किसी रचनामें आपको कोई जानेमाने रचनाकारकी झलक दिखाई दे पर ये तो आप भी जानते ही है कि मेरे जैसे नवोदितोको शुरु शुरुमें प्रेरनाकी जरूरत होती ही है. आशा है कि आपको मेरी रचनायें पसंद आयेगी. आपके सुझावों, सूचनों एवम प्रोत्साहनकी मुझे हमेशा आवश्यकता रहेगी तो आप अपना प्रतिभाव देके मुझे आभारी करें. अंतमें बस ईतना ही कहूंगा कि, "एहसान मेरे दिलपे तुम्हारा है दोस्तो, ये दिल तुम्हारे प्यारका मारा है दोस्तो." अस्तु.

Friday, May 6, 2011

(10) तुम्हारे बिना....


तुम्हारे बिना सूरज तो नीकलता है, पर दिन ऊगता नही ।
तुम्हारे बिना चांद तो चमकता है, पर रात ढलती नही ।
तुम्हारे बिना समय तो चलता है, पर घडियां बीतती नही ।
तुम्हारे बिना दिल तो धडकता है, पर मन लगता नही ।
तुम्हारे बिना फूल तो खिलते है, पर बाग महेंकता नही ।
तुम्हारे बिना पंछी तो गाते है, पर संगीत जचता नही ।
तुम्हारे बिना नींद तो आती नही, और सपने दिनमें सताते है ।
तुम्हारे बिना लोग तो मिलते है, पर "राझ" तन्हा है ।
तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना, तुम्हारे बिना,
बहोत कुछ कहेना है; पर कहे तो किससे कहे ?
तुम्हारे बिना....

गुजराती साहित्यके ख्यातनाम कवि श्री सुरेश दलालकी निम्नलिखित पंक्तिओसे प्रेरित होकर:-
તારા વિના સૂરજ તો ઊગ્યો
પણ આકાશ આથમી ગયું.
તારા વિના ફૂલ તો ખીલ્યાં
પણ આંખો કરમાઈ ગઈ.
તારા વિના ગીત તો સાંભળ્યું
પણ કાન મૂંગા થયા.
તારા વિના…
તારા વિના…
તારા વિના…
જવા દે,કશું જ કહેવું નથી.
અને કહેવું પણ કોને તારા વિના ?

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