ता-उम्र ढूंढा वो जहेनमें बावस्ता निकला,
मुझसे हरसू तेरे सितमका वास्ता निकला।
क्यूँकर करते महोब्बतका ईनकार तुमसे ?
हरएक आहका तुम्हीसे जो रिश्ता निकला।
हाथमें लिये खड़ा था हरकोई पत्थर यहाँ,
एक नाम तो बता जो फरिश्ता निकला !
सबब जन्नतका कोई हमसे भी तो पूछे,
उनके घरके सामने ही गुलिस्ताँ निकला।
या ईलाही मेरे गमकी कोई दवा न कर,
ईश्कमें यूं ही जीनेका शिरस्ता निकला।